स्वामी विवेकानंद और युवा शक्ति

यह एक कटु सत्य है कि युवा पीढ़ी किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए उसकी रीढ़ होती है। जिस प्रकार रीढ़ के क्षतिग्रस्त हो जाने पर शरीर का सीधे खड़े रहना भी असंभव हो जाता है अर्थात रीढ़ के क्षतिग्रस्त होने पर शरीर का विकास होना भी संभव नहीं होता है। ठीक इसी प्रकार देश के विकास के लिए विकास की रीढ़ यानी युवा वर्ग की मानसिकता का स्वस्थ रहना अत्यंत जरूरी है। वर्तमान वातावरण में एक ओर जहाँ आज समाज में हर तरफ अपराधों  का तथा भ्रष्टाचार का एक जबरदस्त मकड़जाल फैला हुआ है, वह दीमक की भांति देश को अंदर ही अंदर खोखला कर रहा है। दूसरी ओर युवा वर्ग भी भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के इस दूषित माहौल में हताश व निराश है। ऊपर से वर्तमान शिक्षा नीति द्वारा केवल बाबू वर्ग तैयार करना उन्हें कहीं का नहीं छोड़ रहा है। 

आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारे युवा वर्ग सही मार्ग से न भटकें। इसके लिए युवा शक्ति को जागृत कर उसे देश के प्रति कर्तव्यों का बोध कराते हुए सही दिशा में प्रेरित एवं प्रोत्साहित करना और उचित मार्गदर्शन बेहद महत्वपूर्ण है। स्वामी विवेकानंद जी विज्ञान, कला, धर्म, दर्शन और साहित्य के महान ज्ञाता थे। वे भविष्य दृष्टा थे। उन्होंने भारतीय कला और संस्कृति को आगे बढ़ाया और इसके महत्व को दुनिया को समझाया। उन्होंने अपनी विद्वता का डंका बजाते हुए शिकांगो के धर्म सम्मेलन में जो भाषण दिया था, उसकी चर्चा आज भी होती रहती है। उनका 11 सिंतबर 1893 को दिया गया यह भाषण ऐतिहासिक था। स्वामी जी का ऐसा भाषण था कि लोग मिनटों तक तालियां बजाते रहे।उनके भाषण के शुरुआती शब्द 'भाइयों-बहनों' ने भी वहां मौजूद लोगों को किस तरह सम्मोहित कर लिया था यह किसी से छिपा नहीं है।उन्होंने ज्ञान, उपदेश और तर्कों की जो अविरल धारा वहाँ बहाई उसमें अच्छे-अच्छे विद्वान भी बह गये। उनका शब्दाकर्षण गजब का था। 

आइए जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद में उस भाषण में ऐसी कौन सी बड़ी बातें कही थीं जिनका आजतक सानी नहीं मिला...
'मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों' स्वामी जी ने इसी संबोधन के साथ भाषण की शुरुआत की थी। उन्होंने आगे कहा, मैं सभी धर्मों की जननी औऱ दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं और सभी जातियों, संप्रदायों के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मैं यह बताने वालों को भी धन्यवाद देता हूं कि दुनिया में पूरब ने सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ दुनिया को पढ़ाया है। 

हम विश्व के सभी धर्मों का सम्मान करते हैं
स्वामी जी ने कहा, 'मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों को शरण दी है।  मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं जिसने पूरी दुनिया को सहिष्णुता औऱ सार्वभौमिक स्वीकृति का ज्ञान दिया। हम  विश्व के सभी धर्मों को बराबर सम्मान देते हैं। हमने अपने दिल में इजरायल की पवित्र यादें संजोकर रखी हैं। जब रोमन हमलावरों ने उनके धार्मिक स्थानों का विध्वंस कर दिया तो उन्होंने दक्षिण भारत में आकर शरण ली। हम सताए हुए लोगों को शरण देते हैं।'

स्वामी जी ने कहा था, जिस तरह नदियां अलग-अलग जगहों से निकलती हैं और अपना रास्ता चुनकर आखिरकार जाकर समुद्र में मिलती हैं। उसी  तरह  इंसान भी अपनी मर्जी से अपना रास्ता चुन सकता है। रास्ता देखने में अलग हो सकता है लेकिन अंत में जाकर एक ईश्वर पर ही खत्म होता है। 'रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।' यह श्लोक बोलते हुए स्वामी विवेकानंद ने उपर्युक्त बातसमझाने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा था कि सांप्रदायिकाएं,  कट्टरपंथ औऱ हठधर्मिता लंबे समय से लोगों को अपने शिकंजे में जकड़े हुए है। इसी वजह से यहां हिंसा होती है। अगर ये राक्षस ना होते तो आज समाज ज्यादा विकसित औऱ उन्नत होता।

स्वामी विवेकानंद ने एक सकारात्मक उम्मीद जताते हुए कहा था, अब इन राक्षसों का समय खत्म हो चुका है। मुझे उम्मीद है कि सम्मेलन का नाद कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का नाश करेगा। यह चाहे तलवार से संभव हो या फिर कलम की धार से।
आज आवश्यकता है कि हम स्वामी जी के विचारों को आत्मसात करें और उनके द्वारा दर्शाये गये मार्ग का अनुसरण करें ताकि हमारी युवा शक्ति की ऊर्जा का समुचित उपयोग हो सके और विश्व कल्याण हो सके। 

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