सात्विक भोजन का अर्थ -
सात्विक आहार वह आहार है जिसमें सतो गुणों की प्रधानता होती है। योग एवं आयुर्वेद में कहा गया है कि सात्विक आहार के सेवन से मनुष्य का जीवन सात्विक बनता है। यौगिक और सात्विक आहार की श्रेणी में ऐसे भोजन को शामिल किया जाता है जो व्यक्ति के तन और मन को शुद्धता, शक्तिवर्द्धकता, स्वस्थता और प्रसन्नता से भर देता है।
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भोजन सात्विक, आयुवर्धक और पुष्टिकारक हो इस हेतु शास्त्र वर्णित नियम
1. भोजन से पहले अपने पाँच अंगों ( दो हाथ , दो पैर और मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करना चाहिए।
2. भोजन के समय गीले पैर रखने से आयु में वृद्धि होती है।
3. शास्त्रों में प्रातः और सायंकाल ही भोजन करने का विधान है क्योंकि पाचन क्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 घंटे बाद तक तथा सूर्यास्त से 2:30 घंटे पहले तक प्रबलता से सक्रिय रहती है।
4. भोजन के समय हमेशा मुँह पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुँह करके ही खाना चाहिए।
5. भोजन करते समय भूलकर भी मुँह दक्षिण दिशा की ओर नहीं करना चाहिए क्योंकि दक्षिण की ओर मुँह करके किया हुआ भोजन प्रेतों को प्राप्त होता है।
6. पश्चिम दिशा की तरफ मुँह करके भोजन करने से रोगों में वृद्धि होती है।
7.हमें शैय्या पर बैठकर, हाथ पर रख कर, टूटे-फूटे बर्तनों में तथा जूते पहनकर भोजन करने से बचना चाहिए।
लेकिन बीमारी की स्थिति में इसका दोष नहीं माना जाता।
8.हमें मल-मूत्र के वेग को दबाकर भोजन नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार शोरगुल तथा कलह के माहौल में भोजन नहीं करना चाहिए।
9.हमें कभी भी परोसे हुए भोजन की निंदा नहीं करनी चाहिए। इसे भगवान का प्रसाद समझ कर ग्रहण करना चाहिए।
10. हमें भोजन शुरू करने से पूर्व अन्न देवता तथा माँ अन्नपूर्णा की स्तुति करनी चाहिए और उनका धन्यवाद करना चाहिए। साथ ही 'सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो', ईश्वर से ऐसी प्रार्थना करके भोजन करना चाहिए।
11. रसोई में भोजन तैयार करने वाले को चाहिए कि वह स्नान करके ही रसोई में प्रवेश करे तथा ईश्वर का ध्यान करते हुए ही भोजन तैयार करे।
12. जहाँ तक संभव हो भोजन रसोई घर में बैठकर परिवार के साथ ही करना चाहिए इससे परिवार के सदस्यों में प्रेम बढ़ता है तथा भाग्य बनता है।
13. सबसे पहले 3 रोटियाँ अलग से गाय,कुत्ते और कौए हेतु निकालकर फिर अग्नि देव को भोग लगाने के पश्चात ही परिवार के सदस्यों को खिलायें।
14. ईर्ष्या, द्वेष, भय, क्रोध, लोभ ,रोग , दीन भाव के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है। अत: भोजन के समय इनसे बचें।
15. किसी मनुष्य या जानवर का आधा खाया हुआ फल मिठाई आदि पुनः नहीं खानी चाहिए क्योंकि हो सकता है पहले खाने वाला व्यक्ति या जानवर किसी रोग से संक्रमित हो।
16.भोजन मौन रहकर करना चाहिए। संभव हो तो भोजन ईश्वर की याद में ही करना चाहिए ।
17. भोजन को आराम से एकदम चबा चबा कर खाना चाहिए। जल्दी जल्दी बिना चबाये खाना कब्ज, बदहजमी जैसी बीमारियों को निमंत्रण देना है।
18. कभी भी भूख से अधिक न खायें। विशेषकर रात को हमेशा भूख से कुछ कम ही खाना चाहिए।
19.आयुर्वेद के अनुसार हमें भोजन में सबसे पहले मीठा, फिर नमकीन और अंत में कड़वा खाना चाहिए। इस प्रकार किया गया भोजन सुपाच्य, पुष्टिकर एवं आयुवर्धक होता है।
20. हमें सबसे पहले भोजन में रसदार, मध्य में गरिष्ठ और अंत में छाछ, दूध, रस जैसे द्रव्य ग्रहण करने चाहिए।
21. आयुर्वेद के अनुसार सात्विक और संतुलित भोजन खाने वाले को आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुनिद्रा और सौंदर्य प्राप्त होता है।
22. जो व्यक्ति ढिंढोरा पीट कर भोजन कराये उसके भूलकर भी भोजन नहीं करना चाहिए।
23. ऐसा भोजन जो कुत्ते द्वारा मुँह लगाया हुआ हो, बासी हो, मुँह से फूँक मारकर ठंडा किया गया हो, जिसमें बाल गिरा हुआ हो, जो अनादर युक्त हो, बिना मन परोसा या पकाया गया हो उसे कभी न करें।
24.ऐसा भोजन जो कंजूस , राजा या वेश्या के हाथों दिया गया हो उसे कभी नहीं करना चाहिए। यह मनोविकार पैदा करता है।
आप इन नियमों को अपने जीवन में जरुर अपनायें और सुखी, स्वस्थ जीवन पायें। अधिक से अधिक लोगों को शेयर करें।
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