साठ के पार

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*-हे युवाओ, हे जवानो तुमसे एक बात पूछता हूँ-*
*-क्या बूढ़ा होना कोई पाप है?-*
*-सच कहना तुम्हारा सच-*
*-कहने का अपराध माफ है।-*

            *-जब हो जाता है कोई बूढ़ा साठ-पैंसठ पार-* 
            *-उसे सब फालतू क्यों समझते हैं?-*
            *-उसकी छोटी सी बात पर ही-* 
            *-बेतहाशा क्यों तमकते हैं?-*

*बात उसकी ढंग से सुनते नहीं_* 
*_बस अपनी ही दलते हैं ।_*
*_जब कोई काम वह बताने लगे-* 
*_तो सुनी अनसुनी कर चलते बनते हैं !_* 

               *-जो अपना सारा जीवन-*
               *-परिवार के लिए खपाता है-*
               *-फिर बुढा़पे में उसी परिवार को-*
               *-वह इतना क्यों खलता है?-*

*_ऐसे बुजुर्ग सात जन्म तक साथ देने-*
*- का वादा करने वाली -*
*-हाथ पकड़कर आने वाली भार्या को भी नहीं सुहाते-*
*_कहती सारे दिन भर घर में पड़े रहते-* 
*-कभी बाहर की हवा क्यों नहीं खाते? _*
*_दिन रात मोबाइल में ही आंखे फोड़ते,_*
*_बाजार जाकर घर के राशन का_*
*_सामान क्यों नहीं ले आते ?_*
         
         *-ज्यों-ज्यों उम्र ढलती है-*
         *-अनदेखी उसकी होने लगती है-*
         *-छींक और खांसी भी उसकी खलती है-*
         *-उनकी नींद में खलल पैदा जो करती है-*

*-कलेजे में टीस तब और भी उठती है-*
*_जब बहू भी आदेश फरमाती है-*
*_मुन्ना रो रहा है इसे जरा बाहर घुमा लाते _? * 
*- सेहत सही रहेगी पार्क तक टहल आते !-*
*_और मुन्ना को घुमा लाने के_* 
*_बाद ही चाय पिलाती है।_* 
*- कई कई बार कहते रहने पर ही-*
*-मांग पूरी कर पाती है।-* 

          *_तुम मानो या न मानो यारो आसान नहीं है _*
          *_यह साठ के बाद की जिंदगी ,_*
          *-मानने होते हैं सबके फरमान_*
          *-बिना हिम्मत भी करनी पड़ती है-*
          *-बेमन सबकी बंदगी।-*
             
*_सेवा निवृत्त बुजुर्ग भी नहीं इससे अछूते हैं _*
*_वे भी आये दिन घूंट अपमान का पीते हैं _*
*-और मन ही मन अपनी दुर्दशा पर रोते हैं। _*
*_परिजन सारी उम्र की कमाई को भूलकर_*
*_हर महीने की पेंशन भी खा जाते हैं। _*
*-कुछ मंगवाओ तो_*
*_ ऊपर से भजन दो-चार सुनाते हैं _।* 

              
              *_60 के पार क्या हुआ ? -*
             *-निष्क्रिय सदस्य का किरदार हुआ। -* 
            *-कल तक घर में जिसकी चलती थी-*
            *-वह अब केवल हामी भरने का हकदार हुआ-*

*_मानो उसकी सरकार ही गिर गई।_*
*_सात जन्म तक साथ देने का _*
*_वादा करने वाली पत्नी भी,_* 
*_सत्ता हथियाने वाले दल से मिल गई!_*

       *_कुछ शकुन पाने को-*
       *-अपना मन बहलाने को,-*
       *-ज्यों ही रिमोट उठाता टीवी चलाने को-*
        *-पोता जिद करने लगता कार्टून चलाने को

*- पोता हाथ से रिमोट छीन लेता_*
*-झट से चैनल बदल कार्टून देखने लगता_* 
*-उठकर जाते समय उसके लिए -*
*-आस्था चैनल लगा देता।-*

*_यों तो वह नासमझ लगता है*
*-चेहरे से मासूम जान पड़ता है ?-*
*-मगर आश्चर्य वह बड़ों को भी पेलता है -*
*-भगवान जाने वह मासूम कैसे जानता है-?*
*-कि बुजुर्गों को भजन-भाव ही भाता है-*
* उनके लिए ही संस्कार/आस्था चैनल आता है-*
*_अब उनका एक पैर कब्र में है,_* 
*_वह नासमझ भी यह बात-*
*-इतनी सी उम्र में कैसे मान लेता है?-*

* -बिना वैद्य डॉक्टर के कहे -*
* -मीठा उससे दूर कर दिया जाता है।-*
* -कमरा उसका अब धार्मिक पुस्तकों से-*
 * - भर दिया जाता है। -* 

               *_अगर कभी शौकिया तौर पर लेडीज-*                     *-जिमनास्टिक्स देख लेता है-*
               *-तो लोग उसे घूरकर यों देखते हैं-*
               *-मानो कह रहे हों कि मरने के सिरहाने है,_*
               *-मगर बूढ़ा अब भी आँखें सेकता है!-*

*_एक दिन नाती पूछने लगा,_*
*_दादाजी, आज कौनसी तिथि है?-*
*-दादाजी ने जब अनभिज्ञता जताई-*
*-उसने बूढ़ों का उपहास उड़ाते हुए कहा-*
*-"आज के बूढ़ों की यह स्थिति है-*
*-सब कहते तो हैं - * 
*_आप अखबार चाट जाते हैं।_*
*-जब इतना भी नहीं मालूम-* 
*-तो झूठा सिर क्यों खपाते हैं?"-*

             *-ध्यान-योग वह करता है-*
             *-तो कहते हैं कि मरने से डरता है-*
             *-जब भजन भाव नहीं करता है-*
             *-तो कहते यमराज से भी नहीं डरता है-*

*-लोग कहते अभी रिटायर हुआ है-*
*-कुछ पेंशन तो खाने दो-*
*-बेटा बहू कहते मूलधन हासिल हुआ-* 
*-अब ब्याज जाता है तो जाने दो-*

                  *-समझ नहीं आता *
                  *-रिटायरमेंट के बाद-* 
                  *-अक्सर ऐसा क्यों होता है?-*
                  *-कि आफिस का बॉस-* 
                  *-घर में भी जगह नहीं पाता है!-*
                  *-जिसके इशारों पर सब नाचा करते थे-*
                  *-वह सबके इशारों पर नाचता है!-*

*अरे अब उसे घर का मुखिया न सही-*
*-एक परिवार का सम्मानित सदस्य-* 
*-तो बने रहने दो-*
*-बचे हैं जो दिन जिंदगी के-*
*-वो तो उसे शकुन से जीने दो-*

                      *-सुनना न सुनना तुम्हारी मर्जी-*
                      *-मगर उसे अपनी बात तो कहने दो-*
                      *-भाव उसके मन के बाहर आने दो-*
                      
*-बोलने की आदत है-*
*-वह धीेरे-धीरे छूटेगी।_*
*-स्वयं को सर्वेसर्वा-* 
*-समझने की धारणा-* 
 *-टूटती-सी ही टूटेगी!-*

        *-जल्दी ही एक समय ऐसा आयेगा-*
        *-जब दिन तुम्हारी भी जवानी का ढल जायेगा-*
        *-तब तुम्हें उसका दुःख समझ में आयेगा-*

*-तुम भी बालकनी में बैठे चुपचाप-* 
*-सड़क की ओर देखोगे।_*
*-आती-जाती भीड़ में-* 
*-परिचितों के चेहरे खोजोगे-*

             *-चाहता हूँ तुम समय रहते-*
             *-बुढ़ापे का दर्द उसका समझोगे-*
             *-फालतू बैठा देखकर भी-* 
             *उसे फालतू नहीं समझोगे।_*
             *-शेष बचे दिन उसके-*
             *-जीवन के संजोओगे-*
             *-तभी तो बोओगे वैसा काट पाओगे।-*
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!!! सभी माननीय बुजुर्गों को समर्पित और उम्र के ढलान पर मौजूद महानुभावों को पूर्व चेतावनी !!
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