सच्चा हमसफर

लक्की साफ्टवेयर इंजीनियर था। उसके पिता उसको सात साल का छोड़कर ही चल बसे थे। गरीब माँ ने उसे मेहनत मजदूरी करके शिक्षा दिलाई थी। मगर शिक्षा ही नहीं उसे संस्कार भी दिये थे। जनरल कास्ट में होने का अभिशाप उसे मालुम था इसलिए 10 वीं कक्षा से ही उसने अपने लक्ष्य पर ध्यान देना शुरू कर दिया था और इसका सुखद परिणाम यह निकला कि 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करके जब उसने इंजीनियरिंग के लिए एंट्रेंस टेस्ट दिया तो उसे पहले ही प्रयास में सरकारी कालेज मिल गई। कहते हैं कि पूत के पैर पालने में ही दिख जातें हैं इसलिए कैंपस सलेक्शन में ही उसकी प्रतिभा को एक नामी आईटी कंपनी ने पहचाना और उसे अपनी बैंगलोर आफिस में नियुक्ति दे दी। उसे यह नौकरी करते 3 साल हो गये थे और इस दौरान कंपनी में वह अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुका था। यही वजह थी कि अब वह 18 लाख के सालाना पैकेज पर था। अब वह गरीब नहीं अपने गाँव का लखपति था। इस बार जब वह दीपावली पर अपने गाँव गया तो उसकी माँ ने कहा, ''बेटा अब तुम शादी कर लो ताकि मरने से पहले मैं पोते-पोती का मुंह देख सकूँ। तुम अपनी पंसद से लड़की देख सकते हो।'' इस पर लक्की का जबाब सुनकर माँ को बड़ा शकुन मिला। लक्की का जबाब था, "माँ यह काम आपका है और मैं न तो आपसे बड़ा हूँ और न ही आपसे ज्यादा समझदार। आपकी पसंद ही मेरी पसंद होगी।"
लक्की का ट्रांसफर जयपुर हो गया था और वह माँ को भी अपने साथ गाँव से जयपुर ही ले आया था। वहाँ उसने एक पाॅश कालोनी में एक फ्लैट किराये पर ले लिया था। 
कंपनी के काम से लक्की एक सप्ताह के लिए मुंबई गया था। अभी दो दिन हुए थे उसे मुंबई आये कि दिन के लगभग 2 बजे उसके पास एक लडकी का फोन आया। उसने फोन पर उसे बताया कि उसकी माँ जी जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में भर्ती है। वह एक ऐक्सिडेंट का शिकार हुईं हैं। वह घबरा गया। साथ ही सोचने लगा वह फोन करने वाली लड़की कौन थी। और फिर उसे तो जयपुर में कोई भी नहीं जानता। अपनी हड़बडा़हट में वह उस लड़की से उसका नाम पूछना भी भूल गया था। उसने उसी नम्बर पर फोन लगाया तो एक दिव्या नाम की लड़की ने फोन उठाया। उसने लक्की से कहा, "घबराने की कोई बात नहीं है। आपकी माँ ठीक हैं और मेरे पापा भी आपकी माता जी के पास वाले बैड पर ही भर्ती हैं। आपके आने तक मैं उनकी देखभाल के लिए हूँ । 
लक्की ने कंपनी में फोन किया और तुरंत फ्लाइट से जयपुर के लिए निकल पड़ा। एयरपोर्ट से वह सीधा हास्पिटल पहुंचा। वहाँ उसने देखा कि उसकी माँ के बैड के बराबर में ही एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति का बैड था और उन दोनों बैडों के बीच में बैठी थी एक सीदी-साधी और खूबसूरत लड़की। उसे समझते देर नहीं लगी कि यही दिव्या है। 
माँ के हालचाल पूछने के बाद जब उसने पूछा कि यह सब कैसे हुआ तो माँ ने बताया कि जब वह डेयरी बूथ से दूध लेकर लौट रही थी तो सड़क पार करते समय उसका एक्सिडेंट हो गया था। इसके बाद कोई उसे बेहोशी की हालत में अस्पताल के बाहर छोड़ गया। तब से इस बेचारी दिव्या ने उसकी देखभाल की है। भगवान ने मुझे बेटी नहीं दी लेकिन अहसास करा दिया कि बेटी क्या होती है। लक्की ने दिव्या को माँ के सामने ही धन्यवाद दिया तो उसने विनम्रता से हाथ जोड़कर कहा कि उसने कोई बहुत बड़ा उपकार नहीं किया मात्र इंसानियत का फर्ज निभाया है। 
दिव्या के पिता का भी 10 दिन पहले एक्सीडेंट हुआ था और सिर में गंभीर चोट थी। आप्रेशन के बाद उन्हें यहाँ शिफ्ट किया गया था।लक्की ने दिव्या का धन्यवाद किया और उसे उसके पास से इलाज में खर्च हुए पैसे पूछे। मगर उसने यह कहते हुए लेने से मना कर दिया, "मां-बाप के लिए इतना-सा पैसा खर्च कर देने से कौनसा दिवाला निकल जाता है? जो भाग्यशाली होते हैं उन्हें ही माता-पिता की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।  और वैसे भी मैं बेरोजगार नहीं हूँ और नौकरी करके इतना सा तो कमा ही लेती हूँ कि मैं अपना और  पिताजी का खर्च आसानी से वहन कर सकूँ ।"
लक्की उसका जबाब सुनकर बड़ा प्रभावित हुआ। उसे इस आधुनिक युग में ऐसा जबाब सुनकर बहुत खुशी हुई। 
  अगले दो दिन तक भर्ती रहने के बाद उसकी माता जी को अस्पताल से डिस्चार्ज मिल गया। अब घर आने पर  लक्की के मनो मस्तिष्क पर दिव्या का चेहरा छाया हुआ था। उसे बार-बार उसकी बातें याद आ रही थी।  उसने सोने से पहले फोन करके उसके पिताजी की तबीयत का हाल पूछा और गुड नाइट कहा। उसने उससे सुबह जल्दी ही अस्पताल आने का वादा किया था। इसलिए दूसरे दिन जब वह जल्दी ही अस्पताल के लिए निकला लेकिन जब वह वहां पहुंचा तो उसे वहाँ न तो दिव्या मिली और न ही उसके पिताजी । 
उस वार्ड के नर्सिंग स्टाफ और मरीजों से पूछने पर पता चला कि उन्हें अभी एक घंटे पहले ही डिस्चार्ज किया गया है। उनकी मृत्यु हो गयी थी।
 यह समाचार सुनकर वह बहुत दुखी हुआ। उसने  अस्पताल से दिव्या के घर का एड्रेस लिया और माँ को फोन कर बताया कि वह देर से घर आयेगा। वह अपना ख्याल रखें और जरूरत पडे़ तो उसे फोन कर दें। 
अस्पताल से वह सीधा दिव्या के घर पहुंचा। वहाँ उसने देखा कि वहाँ उनके रिश्तेदारों और पडोसियों की भीड़ जमा थी। दिव्या का रो-रो कर बुरा हाल था। वहाँ भीड़ में उसकी बुआ और चाची भी थी जो उसे दिलासा देने के बजाय कोस रही रही थी। वे कह रही थी कि वह कलमुंही है जो पहले जन्मते ही मां को खा गई और  अब बाप को ! 
लक्की को उन पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर समय की नजाकतता को समझते हुए उस समय वह मन मसोस कर रह गया। उसने वहाँ उपस्थित पडोसियों और रिश्तेदारों के साथ मिलकर उसके पिता का अंतिम संस्कार करवाया और अपने हाथों से मुखाग्नि दी।

घर जाकर जब उसने अपनी माँ को सब बताया तो माँ ने वहाँ खुद चलने का निश्चय किया। वह कुछ खाना लेकर  लक्की के साथ दिव्या के घर पहुंची। उस समय भी दिव्या की बुआ और चाची उसे ताने दे रही थी। 
वो कोमल को अपने साथ नही रहने देना चाहती थी। इस लक्ली की माँ ने उनको समझाने का प्रयास किया कि बहिन जी इस बेचारी का क्या कसूर है। जन्म-मृत्यु किसी के वश में नहीं हैं। मगर उन दोनों महिलाओं ने गरजते हुए लक्की की माँ से कहा कि वे उसे इस घर में किसी भी कीमत पर नहीं रखेंगी। उनका यह जबाब सुनकर लक्की का धैर्य जबाब दे गया। उसने तेज स्वर में कहा "आंटी आप टेंशन मत लो। अभी लक्ली के दो रिश्तेदार जिंदा हैं। एक उसकी माँ के रूप में सास और दूसरा उसका होने वाला हसबैंड! 
अपने बेटे लक्की के मुंह से यह बात सुनकर उसकी मां ने उसे गले लगा लिया। वह गदगद होकर बोला" मांँ जो लड़की आपसे बिना किसी जान पहचान के एक बेटी के समान आपकी सेवा कर सकती है और अकेले अपने पिता की देखभाल कर सकती है मैं समझता हूँ कि ऐसी  लड़की से अच्छी लड़की मुझे पत्नी के रूप में शायद ही कहीं मिलेगी।" बेटे की बात सुनकर माँ ने दिव्या की इच्छा जाननी चाही। दिव्या ने सबके सामने ही कहा कि जो व्यक्ति बेटा बनकर मेरे पिता का अंतिम संस्कार कर सकता है, मैं समझती हूँ कि इससे अच्छा पति मुझे और कहीं नहीं मिल सकता। मैं लक्की बाबू को पति के रूप में पाकर धनय हो जाऊँगी।" 
दिव्या की यह बात सुनकर अब उसकी बुआ और चाची का भी हृदय परिवर्तन हो गया था। उन्होंने लक्की की माँ से क्षमा मांगते हुए कहा कि हमें माफ कर दो।आपने हमारी आंखें खोल दी हैं। दिव्या बेकसूर है। अब जैसे ही दिव्या के पिता का 15 दिन का श्राद्ध निकल जायेगा हम दिव्या की शादी लक्की के बाबू के साथ विधि विधान से करवा देंगे। आप शादी की तैयारी शुरू करो। लक्की की मां ने उन दोनों को गले लगा लिया। दिव्या ने भी खुश होकर तीनों के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया। 

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